कितना अजीब लगता है जब आपको कोई ऐसी नौकरी मिले जिसमें आपको सिर्फ मालिक का काम करना पड़े लेकिन घर चलाने के लिए रूपये किसी और जरिये से कमाने पड़े। जिसका सीधा सा अर्थ है की आपको अपनी मेहनत से सिर्फ और सिर्फ मालिक का व्यवसाय बढ़ाना है जिसके लिए आपको वेतन या आपका श्रम नहीं दिया जायेगा इस तरह के पदों पर निकली रिक्तियों को अवैतनिक पद कहा जाता है।
इस तरह की रिक्तियां आजकल मिडिया में देखने को मिल रही हैं। यह वह दौर है जब हर कोई पत्रकार बनने की चाह में है फिर चाहे वह पत्रकारिता के मापदंडो पर खरा उतरे या नहीं।
मिडिया को भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है लेकिन इस समय में यह बात कितनी सत्य है इसका अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल है क्योंकि इस दौर में मिडिया का जो हाल है वह सभी भली भाँती जानते है।
मुख्य मीडिया का क्या अभिनय होता है लेकिन स्थानीय मिडिया अपने क्षेत्रीय पाठक तक उनकी जरूरत की सुचनाये, आस-पास की घटनाएं पहुचाने में मुख्य मिडिया से बड़ा अभिनय अदा करता है इस पहलु को अगर देखा जाये तो स्थानीय मिडिया हमारे लिए बहत महत्वपूर्ण हो जाती है लेकिन क्या कभी सोचा है की इन सूचनाओं को पहुचाने वाले भी आप की तरह इंसान है जिनको जीने के लिए कपड़ा, रोटी और मकान की जरूरत होती है इन सब जरुरतो के पता होने के बावजूद ज्यादातर मिडिया हॉउस मालिक अवैतनिक पदों पर रिक्तियां निकालते है क्योकी उनका अखबार या चैनल चल जाता है और मालिक की कमाई होने लगती है लेकिन शायद वें यह भूल जाते है की उनकी इस वृद्धि, समृद्धि में उन अवैतनिक पद वाले पत्रकारों का भी योगदान है जो अपना खून पसीना एक करके आपके अख़बार या चैनेल को लोगो तक पहुचाने का काम करते है लेकिन इन सब बातो से मिडिया हाउस मालिक का तो कोई वास्ता ही नहीं है क्योकी उसने तो लिखित में पहले ही दिया था की पद पूर्ण रूप से अवैतनिक है।
वास्ता है! क्योकी जब एक सम्पादक यह रिक्ति निकालता है या किसी पत्रकार को अवैतनिक पद पर नियुक्त करता है तो क्या उसे यह नहीं जानना चाहिए की जिस व्यक्ति को वह नौकरी दे रहा है उसके पास खाने कमाने का कोई दूसरा संसाधन है या नहीं? ऐसा इसलिए क्योकी आज के समय में कुछ ऐसे पत्रकार है जो वसूली करने के मामलों में फंस चुके है जिसका प्रभाव पुरे पत्रकारिता जगत पर पड़ रहा है। लेकिन यदि वसूली करना, रंगदारी लेना जैसे मामलो को समझा जाए तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है अवैतनिक पद पर काम करना। यही अवैतनिक पद ऐसे कार्य करने के लिए उन्हें मजबूर कर देता है और शायद ऐसा इसलिए क्योकी उनके पास रोजगार का दुसरा संसाधन नहीं है। इसी में कुछ बुद्धिजीवीयों का ऐसा भी कहना होता है की एक पत्रकार को उसके द्वारा दिए गए विज्ञापन से भी कुछ फीसदी हिस्सा कमीशन के रूप में दिया जाता है लेकिन यह सभी जानते है की कितना हिस्सा दिया जाता है?
इसलिए सभी संपादको को किसी भी अवैतनिक पद पर नियुक्ति करने से पहले उस व्यक्ति की पृष्ठभूमि को अच्छे से जान लेना चाहिए क्योकी किसी भी पत्रकार द्वारा किये गलत कार्य से न सिर्फ उस पत्रकार की छवि खराब होती है बल्कि सम्बंधित मिडिया हाउस की गरिमा पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।