वैसे तो भारत मे सट्टेबाजी को अवैध माना जाता है लेकिन फिर भी भारतीय सरकार ने ऑनलाइन सट्टा लगाने वाली कम्पनियों को मंजूरी दे रखी है वजह ये है क्योंकि इन कम्पनियों के द्वारा भारतीय सरकार को 30 फीसदी तक टैक्स दिया जाता है। लेकिन क्या टैक्स कंपनियां देती है? तो इसका जवाब है बिल्कुल नही। टैक्स का पैसा जीतने वाले से टैक्स के रूप में लिया जाता है।
भारतीय सरकार के अनुसार जिस खेल में खेलने वाला अपने कौशल का उपयोग करते हुए किसी भी खेल में रुपये लगाता है तो वह वैध माना जायेगा लेकिन जिस खेल में सिर्फ किस्मत का खेल हो वह पूर्ण रूप से अवैध माना जायेगा।
सरकार द्वारा दिये गए इस कथन पर कितना भी विचार किया जाए समझ से परे है। लेकिन क्या सट्टेबाजी को इस तरह से वैध ठहराना सही है ? सरकार को शायद ये भी ख़बर तक नही है की आज का युवा इस जंजाल में इतना फंस चुका के इससे बाहर आना शायद ही सम्भव हो।
क्या आज के युवा वर्ग के साथ सरकार इस तरह से खिलवाड़ कर सकती है वो भी सिर्फ टैक्स वसूलने के लिए?
यदि सरकार इसकी जांच कराए तो हैरान करने वाले आंकड़े निकल कर सामने आएंगे। जिस तरह से सरकार ने रील्स बनाने वाली चाइनीज एप्प्स को प्रतिबंधित करने का बड़ा कदम उठाया था ठीक उसी तर्ज पर सरकार को इन सट्टा लगाने वाली एप्प्स को प्रतिबंधित करना चाहिए। यदि जल्द से जल्द सरकार ने इन एप्प्स के खिलाफ कोई कड़ा रुख नही अपनाया तो आने वाला समय बड़ा ही भयावह होने वाला है।
सूदखोरों व फाइनेंसरो की बल्ले- बल्ले
इतना ही नहीं सट्टेबाजी एप्प्स ने कुछ मौकापरस्त सुदखोरों और फाइनेंसरों की चांदी कर रखी है। जब कोई भी इन एप्प्स पर सट्टा लगता है तो पहले वह अपनी जमा पूंजी को दांव पर लगाता है फिर जब उसके पास कुछ नही बचता है फिर वह कुछ ऐसे सूदखोरों या फाइनेंसरो की तरफ रुख करता है जहां से उस 30- 40 फीसदी पर रुपये दिए जाते है ओर वो भी मात्र कुछ दिनों के लिए ओर फिर जब वह लिए गए रुपयों को चुकाने में असमर्थ होता है, उससे प्रताड़ित किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप स्वरूप वह युवा कोई भी गलत कदम उठाने पर मजबूर हो जाता है और निकलना तो दूर की बात वह ऐसी ऐसी गतिविधियों में संलिप्त हो जाता है जहाँ से उसका लौटना नामुमकिन हो जाता है। इसलिए यदि सरकार कल के भविष्य को बचाना चाहती है तो इन सट्टेबाजी एप्प्स के साथ साथ इन सूदखोरों पर भी शिकंजा कसना होगा।